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मधुबनी चित्रकला

  • Akhilesh Kumar Yadav
  • May 25, 2024
  • 4 min read

Updated: May 27, 2024

बिहार में कला और संस्कृति की परंपरा में मधुबनी पेंटिंग का स्थान अद्वितीय और प्रतिष्ठित है। किंतु यह पेंटिंग कितनी पुरानी है इसका कोई सही प्रमाण अब तक नहीं मिल सका है। हालांकि, मिथिलांचल में यह पेंटिंग बहुत पहले से ही लोक कला के रूप में घर-आंगन में देखने को मिल रही है। यह कला मिथिला के मधुबनी, दरभंगा, सहरसा, मधेपुरा, सुपौल, पूर्णियाँ आदि जिलों की समस्त लोक जीवन की कला है। हाल के दिनों में इसे अंतरराष्ट्रीय ख्याति भी मिली है।


मधुबनी पेंटिंग तीन प्रकार की होती है:


  1. भित्तिचित्र

  2. अरिपन (भूमिचित्रण)

  3. पटचित्र


भित्तिचित्र दो प्रकार के होते हैं:

  • गोसौनिक (गृह देवता) के घर की सजावट

  • कोहबर घर तथा उसके कोणीय सजावट


गोसौनिक के घर की सजावट के अंतर्गत धार्मिक महल के चित्र होते हैं। इस कला के विकास में ब्राह्मण और कायस्थ परिवारों का मुख्य योगदान है। धार्मिक चित्रण में देवी-देवताओं का चित्रण अधिक होता है, जैसे- दुर्गा, राधा-कृष्ण, सीता-राम, शिव-पार्वती, विष्णु-लक्ष्मी, दशावतार, सरस्वती आदि।


भित्तिचित्र के दूसरे रूप के अंतर्गत कोहबर घर और उसके कोणीय सजावट में कोहबर घर के भीतर और बाहर बने चित्र कामकु व्याप्ति के होते हैं। कोहबर के बाहर रति और कामदेव के चित्र तथा अंदर में पुरुष-नारी के जनन अंगों की आकृति और चारों कोनों पर यक्षिणी के चित्र बनाए जाते हैं। पशु-पक्षियों की चित्रकारी प्रतीक के रूप में होती है, जैसे- केला-मांसलता के प्रतीक के रूप में, मछली - कामोत्तेजक प्रतीक के रूप में, सिंह-शक्ति के रूप में, सुग्गा - कामवाहक प्रतीक के रूप में, हाथी-घोड़ा ऐश्वर्य के रूप में, बांस - वंशवृद्धि के प्रतीक के रूप में, कमल का पत्ता - स्त्री जनन अंगों के रूप में, हंस-मयूर शांति के प्रतीक के रूप में और सूर्य-चन्द्र दो जीवन के प्रतीक के रूप में चित्रित किए जाते हैं।


अरिपन (भूमिचित्रण): बंगाल में इसे अल्पना और मिथिला में अरिपन के रूप में जाना जाता है। यह परंपरा महिलाओं द्वारा पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती आ रही है। यह आंगन या चौखट के सामने जमीन पर बनाए जाने वाले चित्र होते हैं। यह पुराणिक एवं अन्य शास्त्रों के तत्वों पर आधारित है। इन चित्रों को बनाने में कुटे हुए चावल को पानी और रंग में मिलाकर प्रयोग किया जाता है। इन चित्रों की पाँच श्रेणियाँ हैं:

  1. मनुष्यों और पशु-पक्षियों के चित्र

  2. फूल, पेड़ और फलों के चित्र

  3. तांत्रिक प्रतीकों पर आधारित चित्र

  4. देवी-देवताओं के चित्र

  5. स्वास्तिक और दीप के चित्र


विभिन्न अवसरों से संबंधित अरिपन के अलग-अलग रूप प्रचलित हैं, जैसे- अविवाहित लड़कियों के लिए तुलसी पूजा के अवसर पर बनाए गए अरिपन में ज्यामितीय आकार, विशेषकर त्रिकोणात्मक और आयताकार आकारों का अधिक प्रयोग होता है। विवाह और उत्सवों के अवसर पर पक्षियों के आकार का सर्वोच्च उपयोग होता है। इस प्रकार यह अन्य लोक कथाओं की भाँति विभिन्न पर्व, त्योहारों, अनुष्ठानों, विवाह, यज्ञोपवीत और धार्मिक अवसरों में अभिन्न रूप से जुड़े रहते हैं।


पटचित्र: मधुबनी चित्रकला में पटचित्रों की भी अपनी विशेषता है, जिसका विकास प्राचीन भारतीय चित्रकला और नेपाल की पटचित्रकला से हुआ है।

मधुबनी शैली के चित्रों में चित्रित वस्तुओं को सांकेतिक रूप दिया जाता है। जैसे - अगर किसी पक्षी का चित्र बनाना है तो उसका आकार ऐसा बनाया जाता है कि वह पक्षी लगे। अगर किसी आदमी का चित्र बनाना है तो उसकी शारीरिक सुदृढ़ता और सौष्ठव पर ध्यान देने के बजाय पुरुष या स्त्री के व्यवसाय, गुण और दार्शनिक पक्ष को सूक्ष्मता के साथ दर्शाया जाता है। विशेषतः चित्र मुख्यतः दीवारों पर ही बनाए जाते हैं। मगर वर्तमान में व्यावसायिक दृष्टिकोण से कपड़े और कागज पर चित्रांकन की प्रवृत्ति बढ़ी है। चित्र अंगुलियों से या बांस की कूची से बनाये जाते हैं। चित्रों में लोक-कल्पना की ऊँची उड़ान, गहरी भावनात्मक लगन और सुंदर प्राकृतिक रंगों का उपयोग आकर्षण का केंद्र होता है। इस चित्रकला में प्राकृतिक रंगों का उपयोग मुख्य रूप से किया जाता है - काजल और जौ मिलाकर बनाया जाता है, काला रंग चूना और बेर के पत्तों का दूध मिलाकर बनाया जाता है, पलाश के फूलों से लाल रंग, कुसुम के फूलों से या शहतूत के फूलों से हरा रंग- सीग के मुनों से और सफेद रंग चावल और उड़द की दाल से बनाया जाता है। चित्रण में रंगों का समायोजन उल्लेखनीय है। पीला रंग - धरती, उजला रंग - पानी, लाल रंग - आग, नीला रंग - आकाश और काला रंग वायु के लिए युक्त होता है।


मुख्य कलाकार: 

इस शैली के मुख्य कलाकारों में पद्मश्री सीता देवी, कौशल्या देवी, बौआ देवी, सावित्री देवी तथा महासुन्दरी देवी (पद्मश्री - 2010) आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। इनकी प्रसिद्ध चित्रकला जयन्ती जनता एक्सप्रेस रेलगाड़ी के डिब्बों में, संसद भवन के द्वार पर, पटना रेलवे स्टेशन पर और मधुबनी रेलवे स्टेशन की दीवारों पर अंकित है। चित्रकला को विश्व ख्याति दिलाने का श्रेय श्री भास्कर कुलकर्णी, प्रो ललित नारायण मिश्र और उपेन्द्र ठाकुर को दिया जाता है।


इस तरह स्पष्ट है कि मिथिला की इस लोक चित्रकला ने न केवल मिथिला बल्कि सम्पूर्ण भारतवर्ष का आध्यात्मिक और सांस्कृतिक श्रेष्ठता को प्रदर्शित किया है। हजारों वर्षों से चली आ रही प्राचीन और सनातन संस्कृति को मिथिलावासी धरोहर के रूप में आज भी जीवित रखे हुए हैं। वर्तमान में इसके व्यवसायीकरण से इसमें कुछ गिरावट जरूर आई है, किंतु इसका लाभ यह हुआ है कि यह कला अब देश की सीमाओं को लांघकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति अर्जित कर रही है।



नाम: अखिलेश कुमार यादव

मोबाइल नंबर: 9546354110

पता: हैप्पी हाउस, गांव फुलवरिया, वार्ड नं 06, खण्ड कार्यालय अंधराठाढी, जिला मधुबनी 847401


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